८.१ अर्जुन उवाच
किं तद ब्रह्म, किं अध्यात्मं, किं कर्म, पुरुषोत्तम ?
हे पुरुषोत्तम श्री कृष्ण, वह जिसे आप ने ब्रह्म कहा है वह क्या है? अध्यात्म क्या है, और कर्म क्या है?
८.३ श्री भगवान उवाच
अक्षर ब्रह्म परमं, स्वभाव अध्यात्म उच्च्यते
भूत भाव उदभव करो, विसर्गः कर्म संजितः
अक्षर ब्रह्म परमं
जिसका नाश कभी नहीं होता, उसे ही ब्रह्म कहते हैं. उदाहरण के लिए, वैज्ञानिक भी अब जान गए हैं कि प्रकृति की सभी शक्तियां और ज्ञान जो सभी वस्तुओं और जीव में निहित हैं वे ब्रह्म ही हैं क्योंकि उनका एक रूप से दुसरे रूप में परिवर्तन तो होता है. किन्तु नाश कभी नहीं होता. जो तत्व ज्ञानी, श्री कृष्ण द्वारा दी गयी ब्रह्म की इस परिभाषा को जान लेते हैं, वे ब्रह्म को समस्त विश्व में हर जगह और हमेशा देखते हैं.

स्वभाव ( स्व अर्थात मौलिक और भाव अर्थात गुण) अर्थात मनुष्य का (सहज या निर्मल) स्वभाव ही अध्यात्म कहलाता है. अध्यात्म का मौलिक होना यह सिद्ध करता है कि यह बाहर से सीखा नहीं जा सकता, जो भय या प्रतिक्रिया या अपेक्षा से रहित है, और उसका प्रमाण वह स्वयं है. नवजात शिशु का स्वभाव, अध्यात्म का प्रत्यक्ष दर्शन है.
भूत भाव उदभव करो, विसर्गः कर्म संजितः
भाव, जो स्व+भाव नहीं है, और जो सीखा जा सकता है, प्रमाण द्वारा, तर्क से सिद्ध है, और प्रतिक्रिया या एक दूसरे की अपेक्षा के लिए होता है, उससे ही भौतिक संसार की सृष्टि होती है. इस प्रतिक्रिया में लगने वाले भाव जिस से सृष्टि का उदभव होता है,वही कर्म है.
अध्यात्म (अर्थात "स्व+भाव" ) में कर्म फल की अपेक्षा नहीं होती क्योंकि वह मौलिक या स्वयं से ही उद्भूत है जबकि "भूत + भाव " (अर्थात भौतिक या सांसारिक ज्ञान), कारण और फल (cause and effect) से बंधा है. संत तुलसी दास ने इसे इस तरह लिखा "करम प्रधान विश्व रचि राखा, जो जस करै, सो तस फल चाखा".
विश्व या संसार, एक रचित या प्रतिक्रिया से निर्मित कर्म-क्षेत्र है, इस युद्ध को ज्ञान और भगवत कृपा से विजय करने के उपरांत ही, अध्यात्म प्राप्त होता है. अर्थात, आत्मा में प्रवेश के लिए मन के द्वार एक एक कर खुलने लगते हैं. कर्म के फल शुभ और अशुभ दोनों ही हो सकते हैं,जिस पर उसका अधिकार नहीं होता, और भौतिक शास्त्र के प्रभाव और परिस्थितियां उसको करने के लिए विवश करती है. इस लिए कर्म फल के त्याग से ही, मनुष्य, कारण रूपी मन, और स्वभाव को जानने का प्रत्न कर सकता है.
vigyan aur adhayatm ko kitani saralta se aap ne jod diya ......padh kar achha laga ..haan jo nanha shishu aapki god me hai vah kaun hai? bhut oyara hai , kala teeka laga dijiyega
ReplyDeleteबढ़िया मिश्रजी, जमाये रहिये कर्मयोग। वैसे जनता को दृष्टान्त से ज्यादा समझ में आता है!
ReplyDeleteवर्ड वैरीफिकेशन का झंझट हटा दें तो अच्छा।
wah parth wah!narayan narayan
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